Sharad Purnima 2024: शरद पूर्णिमा कब मनाई जाएगी, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजन विधि
खीर को खुले आसमान के नीचे रखकर चंद्रमा की किरणों में उसका आशीर्वाद लिया जाता है। इसे औषधीय और दिव्य माना जाता है। अगले दिन यह खीर प्रसाद के रूप में खाई जाती है और लोगों को बांटी जाती है।
इस बार शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर, 2024 दिन बुधवार को मनाई जाएगी। यह 16 अक्टूबर को रात 7.45 बजे से आरंभ होगा और 17 अक्टूबर 2024 यानि गुरुवार के दिन शाम 5.22 बजे समाप्त होगा। यह त्योहार हिंदू धर्म में बहुत खास महत्व रखता है और इसे शरद ऋतु की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन माह की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है। इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
शरद पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?
शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं में पूर्ण होता है और ऐसा माना जाता है कि इस रात चंद्रमा से अमृत बरसता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी, इस दिन चंद्रमा की किरणों में विशेष ऊर्जा और औषधीय गुण होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माने जाते हैं। दूसरी ओर धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ वृंदावन में रास लीला रचाई थी। यह लीला प्रेम और भक्ति का अद्वितीय उदाहरण है। इस कारण इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। रास लीला भगवान के दिव्य प्रेम का प्रतीक है, जो अध्यात्मिक महत्व रखती है। शरद पूर्णिमा को माँ लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है। इसे कोजागरी पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है, जिसका अर्थ है "कौन जाग रहा है?" ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस रात जागकर लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं, उन पर लक्ष्मी कृपा करती हैं और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
व्रत और प्रसाद
इस दिन लोग व्रत रखते हैं और रात में खीर बनाते हैं। खीर को खुले आसमान के नीचे रखकर चंद्रमा की किरणों में उसका आशीर्वाद लिया जाता है। इसे औषधीय और दिव्य माना जाता है। अगले दिन यह खीर प्रसाद के रूप में खाई जाती है और लोगों को बांटी जाती है।
शरद पूर्णिमा पूजन विधि
शरद पूर्णिमा भक्ति और अध्यात्मिक साधना का दिन माना जाता है। इस दिन की रात ध्यान, साधना और पूजा-पाठ से मनुष्य को अध्यात्मिक उन्नति प्राप्त हो सकती है। प्रातः काल स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें। पूजन सामग्री को एकत्र करें जिसमें सफेद वस्त्र, दूध, चावल, खीर, फल, धूप, दीप, रोली, चंदन और फूल शामिल हों। इस दिन व्रत रखने की परंपरा है। भक्त दिनभर अन्न ग्रहण नहीं करते और केवल फलाहार पर रहते हैं। रात में चन्द्रमा दर्शन के बाद व्रत का समापन होता है।
मां लक्ष्मी और चंद्रमा की पूजा:
- शरद पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से मां लक्ष्मी और चंद्रमा की पूजा का महत्त्व होता है।
- एक चौकी पर मां लक्ष्मी और चंद्रमा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- मूर्ति या चित्र पर चंदन, रोली, चावल, फूल और वस्त्र अर्पित करें।
- धूप-दीप जलाएं और भगवान को भोग चढ़ाएं।
खीर बनाना:
- शरद पूर्णिमा की रात को खीर का विशेष महत्त्व है। खीर बनाने के लिए दूध और चावल का प्रयोग करें। खीर को बनाकर खुले आसमान के नीचे चन्द्रमा की किरणों में रात भर रखें। इसे 'अमृत खीर' कहा जाता है, और ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा की किरणों से यह अमृतमय हो जाती है।
- अगले दिन यह खीर प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है।
चन्द्रमा को अर्घ्य देना:
- रात में चन्द्रमा के उदय होने के बाद चन्द्रमा को दूध और जल से अर्घ्य दें।
- अर्घ्य देते समय "ॐ सोमाय नमः" मंत्र का उच्चारण करें।
ध्यान और आरती:
- पूजा के बाद माता लक्ष्मी और चंद्रमा का ध्यान करें और आरती करें।
- अपनी इच्छा और सुख-समृद्धि के लिए मां लक्ष्मी से प्रार्थना करें।
भजन और कीर्तन:
- पूजा के बाद भजन-कीर्तन करने से वातावरण पवित्र और सकारात्मक होता है।
- इस दिन रात को जागरण करने की भी परंपरा है। इसे 'कोजागरी' कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'कौन जाग रहा है'। मान्यता है कि जो इस रात जागरण करता है, उसे मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
इस प्रकार शरद पूर्णिमा का व्रत और पूजा विधिपूर्वक संपन्न करें।